October 16, 2024
“किस जात से हो, बाबू|” पटना के एक साईंस विभाग में नामांकण के सिलसिले में जाने पर संकाय के हेड ने पूछा था|
अगर ये सवाल छह महीने पहले पूछा गया होता तो मैं इसका जवाब न दे पाता| जाति से सही परिचय कॉलेज के आवेदन पत्र ने कराया था| एक अनुभवहीन किशोर को ज्यादा कुछ सूझा नहीं|
“अब,” बस बोल दिया| इससे ज्यादा कुछ टीका-टिप्पणी न किया गया| प्रोफेसर ने कागज़ पर दस्तखत किए अौर वापस कर दिया| बात सही नहीं लगी, पर चलो|
इस वाकये के बाद कभी कोई जाति जानने को उत्सुक न हुअा| दोस्त बने, पढ़ने को मिला| जाति से न कोई लाभ, न हानि|
क्या खास बात है? बिहार, जहाँ चुनावी दंगल में जातिय समीकरण नापे जाते हैं|
जाति से दूसरी बार मेरा वास्ता दिल्ली में पड़ा| एक बिहारी सहपाठी ‘जात भाई’ बन गले पड़ने लगे| कई सारे बिहारी सहपाठियों में से सिर्फ एक| रोचक बात ये कि मेरी जातिय पहचान सिर्फ कागज़ का टुकड़ा करता हैं| नाम, पिता का नाम नहीं|
जाति जानने की कौतुहलता फिर एक ईसाई को हुई| ‘फैमिली सरनेम’ क्या है? इस बार प्रश्न एक परिपक्व व्यस्क से था| “सरनेम जानकर क्या करेंगे?” नहीं, बस यूँ ही पूछ लिया|
एकाध बार और जाति से सीधा वास्ता पड़ा| तीन दशकों में सिर्फ उँगलियों पर गिनने भर| मतलब जाति नए भारत में बहुत मायने नहीं रखता| एेसा नहीं कि जाति भारतीय समाज से गायब हो गया है| बहुत लोग दूसरों को सीधे नीचा नहीं दिखाते, पर अभी भी ‘सवर्ण’ सरनेम को गौरव समझते हैं|
बिहार के जिस गाँव से मैं आता हूँ वहाँ वर्ण अभी भी कायम है (कोई आश्चर्य नहीं), पर जातिय अत्याचार का कोई खास उदाहरण मेरे पास नहीं| शादी, श्राद्ध में पूरे टोले के बुलाते हैं, साथ ही हर उस व्यक्ति को जिससे सीधा वास्ता रहा है| भोज में गरीब, अमीर, ‘जात-परजात’ एक साथ भोजन के लिए बैठते हैं| जाति के परे दोस्ती भी है| मेहनतकश आगे बढ़ रहे हैं|
जाति का महत्व आपसी झगड़ों में पता चलता है| अगर झगड़ा ‘दलित’ और दूसरी जाति के बीच हो तो SC/ST थाने में ही फरियाद होती है| कारण चाहे कुछ भी हो| पर इस सबके बीच गाँव में एकजूटता के भी उदाहरण हैं| जात से ज्यादा लोग पढ़ाई और सूझबूझ की कमी के शिकार होते हैं| फायदा उठाने वाले ‘जात भाई’ भी होते हैं|
आज के भारत में जात के आधार पर किसी प्रकार का प्रत्यच्छ अत्याचार अगर होता है तो सहने वाले की भी गलती है| कानून का सहारा कौन लेगा| बस रोने से परहेज करें| हाँ, पैसिव अग्रेशन का कोई कारगर ईलाज नहीं|