ये वाकया मेरे वक़्त में गंगा हॉस्टल में रही लड़कियों को संभवत: याद हो। एक कॉमरेड दिव्या थी। मेरा कोई राबता नहीं था। बाद में अमरीका चली गयी फेलोशिप पर। हम सब अमरीका जाने वाले कॉमरेडों पर जैसे तंज़ कसते हैं वैसे ही कसा। पर उससे पहले की बात है। एक दिन हॉस्टल में हंगामे की तरह बात फैली थी। उसने एक दो सहेलियों के साथ झेलम जाकर कुछ दूसरे कॉमरेडों की जबरदस्त शारीरिक समीक्षा कर दी थी। मैं जो अहिंसा की पुरज़ोर समर्थक हूँ, उसे भी सही ही लगा। पीछे की वजह नहीं मालूम पर बदले में किसी दिन उसपर कोई हमला नहीं हुआ। माहौल गरमाया रहा पर जैसा कल अंकिता बता रही थी कि प्रोटेस्ट के दौरान ही किसी परिषद के गुंडे ने उसकी सलवार खींचनी चाही वैसा कुछ तो छोड़ दीजिए किसी तरह के बुरे और अपमानजनक व्यवहार का सामना मेरे जानते उसे नहीं करना पड़ा।
क्या संभव है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के किसी छात्र को उस जगह जहाँ उनकी कोई ख़ास पकड़ नहीं हो, वहां भी कोई लड़की पीटना तो दूर बोलकर, सुनाकर आए और वे कुछ न करें? लड़कियों को वे कितना सम्मान देते हैं तभी पता चलता है जब भीड़ में उनके हाथ किन जगहों पर पहुँचते हैं इसे आप देखें। खैर सब वैसे नहीं होते। हमारे कई मित्र भी उसी विचारधारा के थे/हैं पर ज्यादातर स्त्रियों के मामले में ऐसे कुंठित होते हैं कि मत पूछिए। कॉमरेड अगर दारू, चरस के द्वारा लिबरेट करते हैं तो ये सामने माता-बहन कहते हुए, बात करते वक़्त नज़रें नीची रखकर भी अपने व्यवहार और विचारों से दमन ही करना चाहते है। स्त्रियों को बराबर मानने की मानसिकता तक यह कभी नहीं पहुँचते।