October 16, 2024

School of Languages, JNU, New Delhi (Source: https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/8/82/School_of_languages_JNU_Delhi.jpg)

— विनीत कुमार के ब्लॉग से साभार

जवाहरलाल नेहरू  विश्विद्यालय में अफ़जल गुरु और पाकिस्तान के समर्थन और भारत के विरोध में नारे लगने के बाद एक बार फिर कई सवाल हमारे समाने आ गए है।कौन हैं ये जो इतना विरोध कर रहे है? आखिर क्यों है इतना गुस्सा?क्या बोलने की स्वतंत्रता की भी सीमा है और अगर है तो कहाँ?धरना प्रदर्शन और विरोध कहाँ तक उचित है?आखिर क्या कारण है कि दो विचारों के बीच इतनी असहमति बन गई है?ऐसे मामले में राष्ट्र की क्या भूमिका होनी चाहिए?

धरना और प्रदर्शन का लोकतंत्र में महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन यह किसी भी हालत में राष्ट्रहित और एक हद तक लॉ एंड ऑर्डर के दायरे से बाहर नहीं होना चाहिए।साथ ही हमें यह समझना चाहिए कि जे एन यू में पढ़ने वाले और एक मुहिम को चलाने वाले ये छात्र जिनकी संख्या निश्चिततौर पर अंगुलियों में गिनी जा सकती है वो एक उर्वर दिमाग है। देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान में पढना और एक विरोध का मुहिम चलना साधारण मस्तिष्क के बस की बात नहीं है।

अब यहाँ सवाल यह उठता है कि क्या इस तरह के उर्वर दिमाग को कोई मैनिपुलेट किया जा रहा है।निश्चिततौर पर ऐसा किया जा रहा है। हमें उन शक्तियो का पता लगाकर उनके प्रति सख़्ती बरतनी होगी नहीं तो यह मामला एक घटना मात्र बन कर रह जायेगा और भविष्य में और विकराल रूप लेकर सामने आयेगा।

इसके साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बड़ा सवाल है जिसको बिना किसी नियंत्रण के परिभाषित किया जाना चाहिए। लेकिन यहाँ बड़ा सवाल यह भी है कि क्या यह नियंत्रण छात्रों और बुद्धिजीवियों तक सीमित है। क्या इस दायरे में राजनीतिज्ञों को नहीं लाना चाहिए। क्या इसको रोकने के लिए फिर से कानून बनाना होगा। क्या हम सेल्फ रेगुलेशन से आगे नहीं बढ़ सकते है?

अब फिर राज्य की ज़िम्मेदारी और उसकी भूमिका को लेकर सवाल खड़े हो रहे है। क्या इस तरह की घटना दिल्ली में पहली बार घटी है?क्या जे ए न यू में इससे पहले पाकिस्तान और अफज़ल या उसके जैसे लोगों के समर्थन में पहले नारे नहीं लगे है?क्या इस विश्वविद्यालय में इससे पहले भारत विरोधी नारे नहीं लगे है? जैसी जानकारी मिल रही है उसके अनुसार जे एन यू में पिछले साल भी इसी तरह का कार्यक्रम हुआ था और ऐसे ही नारे लगे थे। तो क्या यह राज्य की असफलता नहीं है? सरकार ने पहले इसे रोकने के लिये कदम क्यों नहीं उठाये? क्या कारण है कि इस तरह कि घटनाओं को अभी तक नज़र अंदाज़ किया गया? या फिर सरकार को इसका पता ही नहीं चला। अगर ऐसा है तो क्या यह राज्य की विफ़लता नहीं है?

क्या हम सबको और सरकार को मिल कर इस समस्या का समाधान नहीं ढूढना चाहिए?क्या इसमें सबकी सहभागिता नहीं होनी चाहिए? क्या हम इसके समाधान में सबको शामिल कर एक नया रास्ता नहीं निकाल सकते है या फिर हम आँख बंद करके समस्या से बचते रहेगे?

— विनीत कुमार के ब्लॉग से साभार